Monday, October 12, 2009

आचार्य कुंवर चंद्रप्रकाश सिंह जन्मशती वर्ष समारोह लखनऊमें

भारत भारती पुरस्कार विजेता आचार्य कुंवर चंद्र प्रकाश सिंह के जन्मशती वर्ष समारोह ९ अक्टूबर २००९ से २२ अक्टूबर २०१० तक का उद्घाटन दिनांक ०९ अक्टूबर २००९ को मालवीय सभागार, लखनऊ विश्वविद्यालय में किया गया! इस जन्मशती वर्ष में वर्ष भर देश के विभिन्न शहरों में राष्ट्रिय संगोष्ठियाँ आयोजित की जावेंगी!


आचार्य कुंवर चंद्रप्रकाश सिंह जन्मशती वर्ष समारोह दिनांक ९ अक्टूबर १००९ से २२ अक्टूबर २०१० के अवसर पर आचार्य कुंवर चंद्रप्रकाश सिंह के सम्बन्ध में मैं हिन्दी प्रेमियों को सूचित कराने के द्रष्टिगत कुछ सामग्री उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के विषय में उपलब्ध करा रहा हूँ!

Monday, June 15, 2009

अमरनाथ धाम यात्रा २००७


मेरी अमरनाथ धाम यात्रा वर्ष २००७



सायंकाल शेषनाग तक की यात्रा पूरी करने के बाद कुछ राहत की साँस! चलो रात्रि विश्राम कर दिन भर की थकान मिटाने का अवसर मिला है!





माता खीर भवानी के मन्दिर में




अमरनाथ धाम की यात्रा का रूट मैप






























जम्मू धरम शाला में खाना खाने के बाद आइसक्रीम का आनंद लेते हुए!

दूसरे दिन सायंकाल अमरनाथ तक की यात्रा पूरी करने के बाद ठंडे ठंडे पानी में नहाने के रोमांच के बाद थकान मिट गई और भगवान अमरनाथ के दर्शनों के लिए सभी लोग तैयार!
दूसरे दिन सायंकाल अमरनाथ तक की यात्रा पूरी करने के बाद ठंडे ठंडे पानी में नहाने के रोमांच के बाद थकान मिट गई और भगवान अमरनाथ के दर्शनों के लिए सभी लोग तैयार!
सायंकाल शेषनाग तक की यात्रा पूरी करने के बाद कुछ राहत की साँस! चलो रात्रि विश्राम कर दिन भर की थकान मिटाने का अवसर मिला है!
सायंकाल शेषनाग तक की यात्रा पूरी करने के बाद कुछ राहत की साँस! चलो रात्रि विश्राम कर दिन भर की थकान मिटाने का अवसर मिला है!


सायंकाल शेषनाग तक की यात्रा पूरी करने के बाद कुछ राहत की साँस! चलो रात्रि विश्राम कर दिन भर की थकान मिटाने का अवसर मिला है!



Sunday, May 17, 2009

महाराणा प्रताप की जयंती


!! लखनऊ में महाराणा प्रताप की जयंती मनाई गई !!


दिनांक 09 में, 2009 को हुसैनगंज चौराहे पर स्थापित देश के वीर सपूत महाराणा प्रताप की मूर्ति पर क्षत्रिय समाज के लोगों ने माल्यार्पण कर उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया!
उनके बारे में एक परिचय :-
मेवाड वीर सपूत महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ। वे उदयपुर उदयपुर
, मेवाड में शिशोदिया राजवंश" के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उस समय ज्येष्ठ शुक्ला तीज संवत् 1597 का समय मुगलों का आंतक व अत्याचारों का युग चल रहा था।

चारों तरफ मेवाड में मानवता रो रही थी। लोग अपने-अपने धर्म व कर्म से हताश हो गए थे, चारों ओर घोर अंधकार और निराशा के बादल छा चुके थे। बडे-बडे शक्तिशाली राजा-महाराजाओं तक ने उस समय के मुगल शासकों की अधीनता स्वीकार कर ली थी। जन-जन को निराशा हो चुकी थी मूक रूप से जन-जन अपने जीवन रक्षक से रक्षा की आशाएं संजोये बैठे हुए देख रहे थे। ऐसे विकट दासता के समय में जन-जन में चेतना जाग्रत करने व वीरता की भावना भरने तथा मेवाड भूमि की रक्षा करने के लिए परमात्मा ने इस वीरभूमि एक देशभक्त सपूत दिया जिसका नाम था। महाराणा प्रताप मेवाड भूमि का कौन जन तानता था कि आगे चलकर यही वीर सपूत प्रताप मेवाड की स्वतंत्रता का अग्रदूत बनकर मेवाड की रक्षा व मान-सम्मान बनाये रखने के लिये जंगलों की राहों में घुमता फिरेगा। इसके जन्म पर ऐसा प्रतीत हुआ मानों सृष्टि सरोवर में मानवता का शतदल खिल उठा हो, मानो पीडित, उपेक्षित, दासता वद्व जन-जन की निराशा आशा का सम्बल पा गई हो। पहली सन्तान होने के कारण उदयसिंह ने उसके बडे लाड प्यार से पाल पोषकर बडा किया तथा माता-पिता द्वारा इसको वीरता की शिक्षा मिली। बचपन में ही इसको अस्त्रों-शस्त्रों से खेलने तथा शिकार करने का बडा शौक था। इन पर मेवाड की जनता अपना बलिदान दकने तथा सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर थी अपने पिता की मृत्यु के बाद मेवाड राज्य का उत्तराधिकारी होकर इन्होंने राजसिंहासन सुशोभित किया। इस समय दिल्ली में सम्राट अकबर राज्य कर रहा था। वह सभी राजा महाराजाओं के राज्यों को अपने अधीन करके पूरे भारत पर मुगल साम्राज्य का ध्वज फहराना चाहता था। परन्तु इस देशभक्त वीर ने मेवाड भूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। अपने को तथा अपने पूरे परिवार को जंगल में भटकते रहने को मजबूर कर संकट झोलकर भी अकबर की अधीनता सम्बन्धी बातों को कभी स्वीकार नहीं किया और समय-समय पर मुगल सेना व मुगलशासकों से लोहा लेते रहे। मुगलों को लोहे के चने चबवाते रहे। परन्तु मेवाड भूमि के एक भी कण को गुलामी की जंजीरों में जकडने नहीं दिया। इन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक मेवाड आजाद नहीं होगा, तब तक महलो को छोडकर जंगलों में निवास करूंगा। सोने के पलंग को छोडकर तृण शैया पर शयन करूंगा। स्वादिष्ट भोजन को त्यागकर जंगली कन्द मूलों का आहार ग्रहण करूंगा। चांदी के बरतनों को छोडकर वृक्षों की पत्तियों से बनी पत्तलों में भोजन करूंगा। परन्तु जीते जी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं करूंगा और अपने प्रण की प्रतिज्ञा का पालन करता रहूंगा। अकबर तथा महाराणा प्रताप के बीच 1576 में हल्दीघाटी नामक स्थान पर युद्ध हुआ वह अविस्मरणीय है। इस युद्ध में प्रताप ने अपनी वीरता से शत्रु सेना के दांत खट्टे कर दिए तथा अपनी वीरता का अपूर्व व अनोखा परिचय दिया। सैकडों मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। परन्तु भाग्य की विडम्बना इस युद्ध का कोई परिणाम न निकल सका। उसके कारण इनके मन मेंनिराश की भावना जाग्रत हो गई और धन के अभाव के कारण चिंतित होने लगे। ऐसे समय में भामाशाह ने अपना धन देकर इनको सहायता देकर अपना नाम भामाशाह दानी बनाया। इस तरह महाराणा प्रताप अपने सम्पूर्ण जीवन को संघर्ष में बिताकर मुसीबतों का सामना करके संकटों को झेलते रहे, लेकिन अन्याय के पथ पर कभी आगे नहीं बढे।

जिस तरह महाराणा प्रताप ने अपने देश की आन-बान-मान आदि की रक्षा के लिए अपने पूरे जीवन को बलिदान कर दिया, उसी तरह हम भी अपने देश की रक्षा तथा सुरक्षा के लिये बलिदान व त्याग की भावना अपनावे।

Thursday, May 14, 2009

चिड़िया घर की सैर

लखनऊ का चिड़िया घर


जैसे ही आप गेट के अन्दर जाने लगेंगे वहाँ पर मुस्तैद पुरूष एवं महिलाओं की एक ब्रिगेड मिलेगी जो आपके सामान की सघन तलाशी लेगी और प्लास्टिक के बैग आपसे लेकर आपको कागज़ के बैग मुहैया कराएगी! कयोंकि प्लास्टिक के बैग हमारे, आपके और पर्यावरण के दुश्मन हैं, जिन्हें खाकर आवारा पशु अक्सर बीमारी का शिकार होते रहते हैं!

गेट के अन्दर जाते ही सबसे पहले मिलती है बच्चों की मनपसंद सवारी "बाल ट्रेन" और जिसकी सवारी के बिना तो बच्चे टस से मस नही हो सकते हैं हों भी क्यों इसकी सवारी है ही इतनी रोमांचक की बच्चे तो बच्चे बड़े बड़े भी इसकी सवारी कराने से नही चूकते हैं! यह ट्रेन पूरे चिडियाघर की सैर कराती है और आप बैठे बैठे पूरा का पूरा चिडियाघर gहूम सकते हैं वह भी बिना थके!









लेकिन बिना नज़दीक से देखे बच्चे कहीं मानने वाले थे, सो बाल ट्रेन के बाद शुरू हुआ पैदल का सफर!
सारा चिडियाघर पैदल घूमा गया और जगह जगह पर फोटो भी मोबाइल से खिचे गए!

यह रहा बैटमैन हाउस
बोटिंग का मज़ा अगर न लिया तो चिडियाघर की सैर अधोरी रह जाएगी
तो दोस्तों कैसी रही चिडियाघर की सैर ? वैसे यह सब प्रयास बच्चों का ही है मोबाइल से फोटो भी उनके द्वारा ही लिए गए!
कुछ फोटो ख़राब हो गए थे इस कारन नही दिए गए! हां बच्चो का पूरा फोकस वे ख़ुद ही रहना चाहते थे सो हर फोटो में वे मौजूद हैं!

Tuesday, May 12, 2009

बिजली चोरी : देश से गद्दारी

बिजली चोरी हमारे देश की एक आम समस्या बन चुकी है और इसके कारण भी हम ही हैं और इसके दुष्परिणामो के भुक्तभोगी भी हम ही हैं ! सामान्य लोग कटिया डालकर और उद्योगपति बिजली विभाग के साथ मिलकर करोड़ों रुपयों की बिजली चोरी नियमित रूप से कर देश के साथ गद्दारी कर रहे हैं! बिजली विभाग से बिजली चोर ज़्यादा सक्रिय हैं इसलिए बिजली चोरी रुकने का नाम नहीं ले रही है और देश में बिजली की किल्लत भी बढ़ती ही जा रही है!
बिजली चोरी देश को दीमक की तरह खा रही बिजली चोरी कई तरीकों से हो रही है जो निम्न प्रकार से हैं :-
(१) घरों में बिजली चोरी-
मैंने जहाँ तक देखा और सुना है सभ्रांत परिवारों द्बारा भी बिजली की चोरी जाती है! चोर तो चोरी करते ही हैं! लोग अपने कुछ रुपये बचने के लिए देश के विकास से गद्दारी कर रहे हैं! उन्हें अहसास ही नही होता है की वे इस चोरी से अपनी ही नही अपने बच्चों की नज़रों के सामने भी सर उठाकर यह नही कह सकते हैं कि वे ईमानदार हैं ! ऐसे लोग अपने बच्चों को अच्छे संस्कार कभी नही दे सकते हैं !
(२) कारखानों में बिजली चोरी-
देश में स्थापित अनेकों बड़े, लघु व् छोटे कारखानों द्वारा बिजली विभाग के लोगों के साथ मिलकर व्यापक पैमाने पर बिजली कि चोरी कि जाती है! जिसका खामियाजा उस क्षेत्र कि जनता को बिजली कटौती के रूप भुगतना पड़ता है!
(३) शादियों / धार्मिक समारोहों में बिजली चोरी-
शादियों / धार्मिक समारोहों में बिजली चोरी करना तो जैसे लोगों का जनम सिद्ध अधिकार होता है! इस कार्य में बिजली वालों की कोई रोक-टोक नहीं होती है!
(४) मज़बूरी में की गई बिजली चोरी - कभी कभी कुछ जाते हैं मज़बूरी भी होती है क्योंकि बिजली विभाग के अभियंताओं द्वारा उत्कोच न मिलने पर बिजली का कनेक्शन मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है! ऐसी स्थिति में कुछ कनेक्शन लाइनमैन से मिलकर अवैध रूप से कनेक्शन न मिलने की मज़बूरी में चलाये जा रहे हैं!
(५) बिजली विभाग के कर्मचारिओं/अधिकारिओं की मिलीभगत से बिजली चोरी-
कुछ लोग बहुत ही उस्ताद होते हैं और बिना कनेक्शन के ही बिजली जलाने में विश्वास रखते हैं! ऐसे लोग जब तक बिजली मुफ्त में जलाने को मिलती रहती है तभी तक उस मकान में रहते हैं उसके बाद उस मकान को छोड़कर दुसरे मकान में चले जाते हैं! पर वैध कनेक्शन कभी नहीं लेते हैं!
(६) बिजली विभाग के कर्मचारिओं/अधिकारिओं की लापरवाही के कारण बिजली चोरी-
बिजली विभाग की अनदेखी उपभोक्ताओं के लिए मुसीबत का सबब बनी हुई है। विभागीय साठगांठ से कटिया डालकर चोरी की जा रही है। ओवर लोड के कारण नगर में रोजाना फाल्ट होते रहते हैं। विभागीय उच्चाधिकारियों की अनदेखी का खामियाजा उपभोक्ताओं को उठाना पड़ता है!
गौरतलब है कि सारे देश में शहर और गाव के मोहल्ले के मोहल्ले कटिया डालकर धड़ल्ले से बिजली चोरी की जा रही है! खुलेआम तार डालकर लोग बिजली चोरी कर रहे है!

इस ब्लाग को पढ़ने वालों से मेरा अनुरोध है की कृपया कम से कम आप लोग अपने अपने बिजली कनेक्शन को विधिसम्मत करवा लें और देश की तरक्की में अपना योगदान दें! क्योंकि जब जागो तभी सबेरा!
"ध्यान रखें बिजली की बचत भी बिजली का उत्पादन है!"

Sunday, April 19, 2009

व्यक्तिगत टिप्पणियां : राजनीतिक मजबूरी या गिरता नैतिक स्तर

आज हमारे शहर ही नही पूरे भारत वर्ष में चुनाव प्रचार के दौरान आपको हजारों वाकये मिल जायेंगे की फलां ने फलां के विरूद्ध व्यक्तिगत टीका - टिप्पणी की है! पहले एक कहावत कही जाती थी की "दुशमनी करो तो जम कर करो, पर ऐसी भी मत करो कि जब नजरें मिलें तो शर्मिन्दा हो जायें" पर अब तो अधिकतर राजनेता बेशर्म हो गए हैं! वहीं पर कुछ ऐसे उम्मीदवार भी हैं जिन्होंने अपरिहार्य परिस्थितियों में भी अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत टीका - टिप्पणी नहीं की है! मेरे शहर में वैसे तो कई प्रत्याशी मैदाने जंग में कूद पड़े हैं पर बड़ी पार्टियों को छोड़कर अन्य किसी उम्मीदवार को जीतने की उम्मीद कम ही होगी! फ़िर भी इन सभी प्रत्याशियों में से दो बड़ी पार्टी के नेताओं का व्यव्हार और उनकी सहनशीलता स्वागत योग्य है अभी तक दोनों प्रमुख पार्टियों के दोनों प्रत्याशियों द्वारा किसी भी विरोधी के विरूद्ध अभी तक कोई व्यक्तिगत आक्षेप न लगाकर अपना प्रचार किया गया है! दोनों दलों के प्रत्याशियों के संस्कार प्रशंसा के योग्य हैं और उन बड़ बोले प्रत्याशियों के लिए एक मिशाल हैं जो केवल और केवल व्यक्तिगत आक्षेप लगाकर विरोधियों को नीचा दिखाना चाहते हैं! मैं इन के पक्ष में मतदान कराने की अपील नही कर रहा हूँ बल्कि आप सभी को बताना चाहता हूँ की इस दौर में भी राजनीति में शराफत देखनी हो तो ऐसे राजनीतिज्ञों को देखिये! मैंने अभी तक जितने अच्छे राजनेता देखे हैं उनमे स्वर्गीय राजीव गाँधी, राजेश पायलट, माधव राव सिंधिया, अटल बिहारी बाजपेई, स्वर्गीय चंद्रशेखर आदि हैं! आज दुर्भाग्य से जितने भी नए नेता आ रहे हैं वे सभी अपने आदर्श के रूप में केवल मौका परस्तों को ही प्राथमिकता दे रहे हैं! फ़िर भी कुछ ही सही संस्कारी नेताओं की वजह से राजनीती उतनी बुरी नही है जितनी जनसामान्य के दिलोदिमाग में होती है! हालाँकि जनता भी अब बहुत समझदार हो गई है और झारखण्ड के पिछले उपचुनाव का परिणाम इस बात का प्रमाण है! विकास को ही वोट करना उसने सीख लिया है! अब जनता समझ जाती है की व्यक्तिगत टिप्पणी मात्र जनता ध्यान विकास के मुद्दे से हटाना मात्र होता है! इसलिए मित्रो सावधान! क्योंकि "सावधानी हटी दुर्घटना घटी"!

Tuesday, February 24, 2009

बागों का शहर में अब पत्थर तराशे जा रहे हैं

हमारा प्यारा शहर लखनऊ बागों के लिए मशहूर है कोई परिचित, रिश्तेदार, दोस्त अथवा गाँव से मिलने के लिए या यूँ कहिए की किसी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने, किसी राजनीतिक रैली के बहाने लखनऊ घूमने, अपनी लड़की के लिए रिश्ता तलाशने अथवा लखनऊ में किसी बैठक में शामिल होने के लिए हमारे पास आया तो रास्ता पूंछता है कि कैसे आपका घर ढूँढूँगा? ज़रा तफ्शील से बताईएगा क्योंकि लखनऊ तो बहुत बड़ा शहर है कही भटक ना जाऊ हालाँकि आपका मोबाइल नंबर तो है मेरे पास फ़िर भी कहीं नेटवर्क ख़राब हो गया तो दिक्कत हो जायेगी मैंने समझाया कि लखनऊ आते ही आप चारबाग से ऑटो कर लीजिए और बागम हज़रत महल पार्क, ग्लोब पार्क, हाथी पार्क और बुद्धा पार्क होते हुए आइएगा आगे आने पर आपको इमामबाडा और निम्बू पार्क मिलेगा इसी से आगे हमारी सरकारी कालोनी है बिल्कुल आसान है क्या भाई साहब आप पार्कों और बागों के बीच में रहते हैं ? इतने पार्कों के नाम अपने गिना दिये हैं कि लगता है "पता" नहीं पूरे शहर के पार्कों के नाम बता रहे हैं ऐसे बागों के शहर में अब sthaan-स्थान पर रंग बिरंगे पत्थर ही पत्थर दिखाई दे रहे हैं अब यहाँ पर पत्थरों के तराशने का कार्य पूरे जोरो खरोश से चल रहा है! अब फुटपाथ पर लगे हरेभरे पेड़ भी काटे जा रहे हैं पर और वहाँ पर कंक्रीट भरी जा रही है! पता नही हरेभरे शहर को किसकी नज़र लग गई है अभी तक तो हम जैसे लोग सप्ताह के अन्तिम दिन अपने परिवार के साथ किसी न किसी पार्क में घूमने के लिए अक्सर जाया करे थे, परन्तु अब ऐसा नही हो सकेगा क्योंकि जो भी पार्क पहले से बने थे अब वे बदहाल हैं और जो नए बन रहे हैं वह सिर्फ़ पत्थरों से ही सजे जा रहे हैं और उन पार्कों में फिलहाल तो सीमेंट और पत्थरों की धूल ही धूल है भविष्य का भी कुछ पता नही है! हमारा प्यारा शहर अब बागों के स्थान पर पत्थरों में अपनी पहचान खोज रहा सा लग रहा है! मुझे लगता है की यह हालत सिर्फ़ लखनऊ का ही है तो हो सकता है की मई ग़लत होऊं क्योंकि बांकी शहरों का हल तो पाठक ही बता सकते हैं की उनके शहरों का हाल क्या है!