Sunday, April 19, 2009

व्यक्तिगत टिप्पणियां : राजनीतिक मजबूरी या गिरता नैतिक स्तर

आज हमारे शहर ही नही पूरे भारत वर्ष में चुनाव प्रचार के दौरान आपको हजारों वाकये मिल जायेंगे की फलां ने फलां के विरूद्ध व्यक्तिगत टीका - टिप्पणी की है! पहले एक कहावत कही जाती थी की "दुशमनी करो तो जम कर करो, पर ऐसी भी मत करो कि जब नजरें मिलें तो शर्मिन्दा हो जायें" पर अब तो अधिकतर राजनेता बेशर्म हो गए हैं! वहीं पर कुछ ऐसे उम्मीदवार भी हैं जिन्होंने अपरिहार्य परिस्थितियों में भी अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत टीका - टिप्पणी नहीं की है! मेरे शहर में वैसे तो कई प्रत्याशी मैदाने जंग में कूद पड़े हैं पर बड़ी पार्टियों को छोड़कर अन्य किसी उम्मीदवार को जीतने की उम्मीद कम ही होगी! फ़िर भी इन सभी प्रत्याशियों में से दो बड़ी पार्टी के नेताओं का व्यव्हार और उनकी सहनशीलता स्वागत योग्य है अभी तक दोनों प्रमुख पार्टियों के दोनों प्रत्याशियों द्वारा किसी भी विरोधी के विरूद्ध अभी तक कोई व्यक्तिगत आक्षेप न लगाकर अपना प्रचार किया गया है! दोनों दलों के प्रत्याशियों के संस्कार प्रशंसा के योग्य हैं और उन बड़ बोले प्रत्याशियों के लिए एक मिशाल हैं जो केवल और केवल व्यक्तिगत आक्षेप लगाकर विरोधियों को नीचा दिखाना चाहते हैं! मैं इन के पक्ष में मतदान कराने की अपील नही कर रहा हूँ बल्कि आप सभी को बताना चाहता हूँ की इस दौर में भी राजनीति में शराफत देखनी हो तो ऐसे राजनीतिज्ञों को देखिये! मैंने अभी तक जितने अच्छे राजनेता देखे हैं उनमे स्वर्गीय राजीव गाँधी, राजेश पायलट, माधव राव सिंधिया, अटल बिहारी बाजपेई, स्वर्गीय चंद्रशेखर आदि हैं! आज दुर्भाग्य से जितने भी नए नेता आ रहे हैं वे सभी अपने आदर्श के रूप में केवल मौका परस्तों को ही प्राथमिकता दे रहे हैं! फ़िर भी कुछ ही सही संस्कारी नेताओं की वजह से राजनीती उतनी बुरी नही है जितनी जनसामान्य के दिलोदिमाग में होती है! हालाँकि जनता भी अब बहुत समझदार हो गई है और झारखण्ड के पिछले उपचुनाव का परिणाम इस बात का प्रमाण है! विकास को ही वोट करना उसने सीख लिया है! अब जनता समझ जाती है की व्यक्तिगत टिप्पणी मात्र जनता ध्यान विकास के मुद्दे से हटाना मात्र होता है! इसलिए मित्रो सावधान! क्योंकि "सावधानी हटी दुर्घटना घटी"!